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साया

उस सड़क से अब, मैं गुज़र नहीं पाती तुम्हारा ज़िक्र होने पर चुपके से बात बदल देती हूं पर हर कुछ महीने में किसी से तुम्हारा हाल पूछ लेती हूं मुझे घर और बाहर का डर हो गया है जहां हम आख़िरी बार मिले थे, मैं वहीं रह गई हूं तुम्हारी हर पुरानी बात के नए मतलब मिल रहे हैं तब ये ना कह कर वो कहा होता, ये सोच रही हूं कुछ दिन पहले, किसी और से मैं भी मिली थी पर लोग मुझे अब अच्छे नहीं लगते और अपने साथ भी मेरा मन नहीं लगता हम सबकी एक पुरानी तस्वीर है, मैं उसमें बस तुम्हें देखती हूं सबके सामने ठीक होने का नाटक कर, फिर अकेले में रोती हूं मुझे आज भी तुम्हारा फ़ोन नम्बर क्यूं याद है क्यूं याद है की तुम्हें मीठा, ज़्यादा पसंद नहीं क्या जुदा, हो गए हम?

ये समाज

बाप ने रुपया रुपया जोड़ कर दौलत कमाई तब मां ने पक्के मकान में गृहस्थी जमाई बाप ने कहा दयालु बनो, नाम कमाओ नेकी करो बेटा, दरिया में बहाओ मां ने बस बच्चों की सोची कहा पैसा सोचो पैसा खाओ, प्रैक्टिकल बनो बेटा, दुनिया को आग लगाओ हम उस दुनिया के वासी हैं जहां इस बाप की सुनने का ख़ामियाजा भुगतना पड़ा। हिन्दू मुस्लिम ब्राह्मिन दलित लेफ्ट राईट ये सब तुम्हें मुबारक... ऐसे समाज का मैं क्या करूंगा जहां दया दिखाना  कमज़ोरी हो गया। मुझे यहां नहीं रहना

ताना शाह

ताना शाह मुझे एक जान, फ़रमान एक तूने जारी किया मुझे काटा बाटा लूटा तूने; दमड़ी तक को बदल डाला, चमड़ी तक को नहीं छोड़ा तू नहीं जाना, ताना शाह मैं एक नहीं, मैं एक अरब हूं। मेरे बचपन की याद को बदल डाला, मेरे शहर के नाम तक को नहीं छोड़ा हम भूखे बेबसों को धर्म के नाम पर तोड़ा एक एक दाने को, रसोई को, खाने को, कपड़ों तक को बाटा; मैं नादान सही, पर कायर नहीं नकाब के पीछे छिपता नहीं; लाश नहीं हूं, चुप था बस ख़ामोश रहा मैं, पर अब बस; मुरख है तू जो तू नहीं जाना, ताना शाह तू सोच रहा, ये एक अकेला है मैं एक नहीं, मैं एक अरब हूं। तू हस रहा जिनकी आड़ में, तेरे पीछे जो सोए हैं, सोच अगर वो जाग गए तब किधर को भागेगा; इंकलाब जब जागेगा, तब तू एक रह जाएगा मैं हर तरफ़ से आऊंगा, मैं एक अरब  हो जाऊंगा। इतिहास दोहराने वाले, तू बाज़ कहां आएगा; मेरा शहर जलाने वाले, सुन तू मुंह की खाएगा। तुझसे क्या डरूं मैं; तू इंसान का बच्चा, भगवान थोड़े ही है कभी सोचा भी, तुझे माफ़ करूं ऐसा भी बुरा हाल थोड़े ही है; पर हद की तूने, बाज़ी जब ज़िन्दगी मौत की हो चली तेरी लगाई आग में मरे बस मेरे लोग, ताना शाह; एक मौक़ा अब और तुझे दूं, इ

काश्मीर

काश्मीर चल चलूंगा लाहौर से मैं, तू शिमले से उड़ी आना काश्मीर में मिलेंगें। सुना है जंग वहाँ अब मुका दि गई है, और Democracy फ़ना हुई है। सबका हक़ है जी समझ का फ़र्क़ है जी,  प्यार जताने में, कोई छोड़ देने को परवाह कहता है कोई थामे रखने को। सुना है घाटी में शांति है पर क्या तू भी यही मानती है? क्या है ये ख़ामोशी? तूफ़ान से पहले की सरगोशी! क्या काश्मीर में मिलना अब ठीक होगा? लाहौरी हिंदुओं को वो हिन्दू मानेंगे, ये मैं तो नहीं मानता। वैसे घाटी में अब, 'लाल फूल' ज़्यादा नज़र आएंगे पर वहां मिलना अब शायद ठीक नहीं। मेरे घर के पास एक बड़ी मस्जिद है, तू नमाज़ वहाँ पढ़ लेना। पर अफ़सोस,  लड़कियों का उसमें जाना, आज भी मना है। सुना है मुल्क़ फिर तक़सीम होने वाले हैं। तो मैं लाहौर ही रुकता हूँ फ़िलहाल, तू शिमले ही रह जा किसी और दिन मिलते हैं। किसी और जगह।

Side B

Side B कैसेट फिरा कर आज दूजी बात पहले सुनकर के देखी। बड़ा मुश्किल रहा, दूसरा पहलू सुनना। शायद पहली बात मेरी थी, तो दूजी रास न आई। किसी तीजे की होती तो बेहतर समझ पाता। हिम्मत कर के आज सुन ही डाला, उनका भी पूरा राग।  आज घमण्ड के नाड़े को ढीला कर, ग़ुरूर के पर्दे फ़ाश किये। कुछ नया ही था ये किस्सा.... कमाल तो ये हुआ कि, ये भी सच निकला। कितना सही। मेरे सही से बिलकुल ग़लत, पर फिर भी कितना सही।  बीच इल्ज़ाम में रोककर कई सफ़ाई मैंने भी दी। कई दफ़े बातों के ऊपर बातें भी भिड़ी। कई दफ़े कैसेट पीछे मुड़ी, फिर आगे बढ़ी। पर पहलू ये भी अधूरा नहीं। पहलू वो भी पूरा नहीं। उतने ही शब्दो की माला थी, काफ़िये मिलाये भी नहीं। पर फिर भी ज़्यादा रोमानचक। और सही होकर भी पूरा सही नहीं।  या मैं ही ग़लत था।  उस बार भी.... हर बार ही।  आज सुनकर देखूँ बाक़ी सारे,  साइड-बी

दो फ़लसफ़ी

(the two artists, philosophers, creators) दो तरह के फ़लसफ़ी मिले मुझे जहां में 'अनन्त'। पहले वो,  जिन्होंने एक रात न देखी; फिर दिन में, रात की बात कर तमाशा किया करते। दूजे वो, जो रातों जागे; और दिन में, उजाले का खेल दिखाते। दोनों का कहना दरसल वही। की रात ही रात है ज़माने में; अपना फ़लसफ़ा, आख़िर हम बदल कैसे दें।

घाट

घाट जे पेट नही जे कुओ है, जे आग है सब ए निगल जावे। जलत हमेसा धीमी सी, धीमी सी, धीमी सी। जब जरे सो मानस ए खा जावे। कहत निरआखर सुनो भई लोगों जे खुसबू घाट पे मिट्टी की, मिट्टी की। जे ख़ून में थोड़ी लिपटी सी, लिपटी सी। जिसे घाट ने जीवन देनो थो, वाने मौत के घाट उतारो है।