साया
उस सड़क से अब, मैं गुज़र नहीं पाती तुम्हारा ज़िक्र होने पर चुपके से बात बदल देती हूं पर हर कुछ महीने में किसी से तुम्हारा हाल पूछ लेती हूं मुझे घर और बाहर का डर हो गया है जहां हम आख़िरी बार मिले थे, मैं वहीं रह गई हूं तुम्हारी हर पुरानी बात के नए मतलब मिल रहे हैं तब ये ना कह कर वो कहा होता, ये सोच रही हूं कुछ दिन पहले, किसी और से मैं भी मिली थी पर लोग मुझे अब अच्छे नहीं लगते और अपने साथ भी मेरा मन नहीं लगता हम सबकी एक पुरानी तस्वीर है, मैं उसमें बस तुम्हें देखती हूं सबके सामने ठीक होने का नाटक कर, फिर अकेले में रोती हूं मुझे आज भी तुम्हारा फ़ोन नम्बर क्यूं याद है क्यूं याद है की तुम्हें मीठा, ज़्यादा पसंद नहीं क्या जुदा, हो गए हम?